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नज़्म
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ज़ा में शोला-अफ़्शाँ देव-ए-इस्तिब्दाद का ख़ंजर
सियासत की सनानें अहल-ए-ज़र के ख़ूँ-चकाँ तेवर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सफ़्हा-ए-हस्ती से मिट जाएगा नाम-ए-ज़ुल्म-ओ-जब्र
अहल-ए-इस्तिब्दाद सब बे-दस्त-ओ-पा जाएँगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
फ़ना कर देंगे अहल-ए-जब्र-ओ-इस्तिब्दाद की हस्ती
ज़मीं में दफ़्न रस्म-ए-जहल-ओ-वहशत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बहर-सू जब्र-ओ-इस्तिबदाद चाहे सूलियाँ गाड़े
उतर आएँ बलाएँ हाथ में ज़हराब ले ले कर
गुफ़्तार ख़याली
नज़्म
कहा किस ने कि इस्तिब्दाद इक ज़िमनी हक़ीक़त है
कहा किस ने तशद्दुद बरबरियत कम बक़ा कुछ सानेहे से हैं
सत्यपाल आनंद
नज़्म
ना-तवानों के हैं रक्षक हक़-परस्तों के हैं दास
ज़ुल्म-ओ-इस्तिब्दाद को जड़ से मिटा देते हैं हम
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
ये कमज़ोरों की आबादी में ताक़त की ‘अमल-दारी
रहेगा देव-ए-इस्तिब्दाद का सिक्का रवाँ कब तक