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नज़्म
मैं भी अश्या को पुकारों उन के अपने नाम से
इस लिए कि हर किताब-ए-आसमानी में लिखा है सच कहो
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
मदरसे की फ़ीस पेंसिल पेन किताबें कापियाँ
मुश्तमिल था चंद अश्या पर निगाहों का बयाँ
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
उन में काहिल भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि तिरे नाम से बे-ज़ार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हैं माजूनें मुफ़ीद ''अर्वाह'' को माजून यूँ होता
सुनो तफ़रीक़ कैसे हो भला अश्ख़ास ओ अश्या में
जौन एलिया
नज़्म
विलायत पादशाही इल्म-ए-अशिया की जहाँगीरी
ये सब क्या हैं फ़क़त इक नुक्ता-ए-ईमाँ की तफ़्सीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ला कहीं से ढूँढ़ कर अस्लाफ़ का क़ल्ब-ओ-जिगर
ऐ कि न-शिनासी ख़फ़ी रा अज़ जली हुशियार बाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
उस की गर्दन के बहुत पास से गुज़रे हैं कई तीर मिरे
वो भी अब उतना ही हुश्यार है जितना मैं हूँ
गुलज़ार
नज़्म
पढ़ के जिस के हो गईं हुश्यार अक़वाम-ए-ग़ुलाम
इश्तिराकी फ़ल्सफ़ा का खुल गया हर दिल में बाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
अपने फ़न में बड़े हुश्यार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'