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नज़्म
मैं वो हूँ जिस ने अपने ख़ून से मौसम खिलाए हैं
न-जाने वक़्त के कितने ही आलम आज़माए हैं
जौन एलिया
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
चश्म-ए-दिल वा हो तो है तक़्दीर-ए-आलम बे-हिजाब
दिल में ये सुन कर बपा हंगामा-ए-मशहर हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शायर है तो अदना है, आशिक़ है तो रुस्वा है
किस बात में अच्छा है किस वस्फ़ में आली है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हम ने इन आली बिनाओं से किया अक्सर सवाल
आश्कारा जिन से उन के बानियों का है जलाल