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नज़्म
अख़्लाक़ का चराग़ बुझाना न चाहिए
ज़ुल्मत-कदा में ग़ैर के जाना न चाहिए
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
मुझे इस शाम है अपने लबों पर इक सुख़न लाना
'अली' दरवेश था तुम उस को अपना जद्द न बतलाना
जौन एलिया
नज़्म
आ आ के हज़ारों बार यहाँ ख़ुद आग भी हम ने लगाई है
फिर सारे जहाँ ने देखा है ये आग हमीं ने बुझाई है