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नज़्म
वो बर्फ़-बारियाँ हुईं कि प्यास ख़ुद ही बुझ गई
मैं साग़रों को क्या करूँ कि प्यास की तलाश है
आमिर उस्मानी
नज़्म
होते हैं बात करने में चौदह बरस तमाम
क़ाएम उमीद ही से है दुनिया है जिस का नाम
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
बर्फ़ ने बाँधी है दस्तार-ए-फ़ज़ीलत तेरे सर
ख़ंदा-ज़न है जो कुलाह-ए-मेहर-ए-आलम-ताब पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बर्फ़ बरसाई मिरे ज़ेहन ओ तसव्वुर ने मगर
दिल में इक शोला-ए-बे-नाम सा लहरा ही गया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उस की चितवन सेहर-आगीं उस की बातें दिल-रुबा
चाल उस की फ़ित्ना-ख़ेज़ उस की निगाहें बर्क़-पाश
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
दिन जल्दी जल्दी चलता हो तब देख बहारें जाड़े की
और पाला बर्फ़ पिघलता हो तब देख बहारें जाड़े की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उसे कहना दिसम्बर आ गया है
दिसम्बर के गुज़रते ही बरस इक और माज़ी की गुफा में डूब जाएगा