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नज़्म
सुनो राय-दहिंदा बिन हुए तुम बाज़ मत आना
फ़क़त 'ज़रयून' हो तुम यानी अपना साबिक़ा छोड़ो
जौन एलिया
नज़्म
गाह हम बनते हैं क़ुमरी गाह वो बनते हैं बाज़
आप को मालूम क्या आपस का ये राज़-ओ-नियाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
''शोर-ए-लैला को कि बाज़-आराइश-ए-सौदा कुनद
ख़ाक-ए-मजनूँ-रा ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-सहरा कुनद''