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नज़्म
ये न साक़ी हो तो फिर मय भी न हो ख़ुम भी न हो
बज़्म-ए-तौहीद भी दुनिया में न हो तुम भी न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम
लैला-ए-नाज़ बरफ़्गंदा-नक़ाब आती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब साज़-ए-अज़ल की फ़ुग़ाँ
जिस से दिखाती है ज़ात ज़ेर-ओ-बम-ए-मुम्किनात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
या नुमायाँ बाम-ए-गर्दूं से जबीन-ए-जिब्रईल
वो सुकूत-ए-शाम-ए-सहरा में ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रियाज़-ए-दहर में ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-इशरत हूँ
ख़ुशी रोती है जिस को मैं वो महरूम-ए-मसर्रत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस से कहूँ कि ज़हर है मेरे लिए मय-ए-हयात
कोहना है बज़्म-ए-कायनात ताज़ा हैं मेरे वारदात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो बिजली है जला सकती है सारी बज़्म-ए-इम्काँ को
अभी मेरे ही दिल तक हैं शरर-सामानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
था सरापा रूह तू बज़्म-ए-सुख़न पैकर तिरा
ज़ेब-ए-महफ़िल भी रहा महफ़िल से पिन्हाँ भी रहा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
में क़सम खाता हूँ अपने नुत्क़ के ए'जाज़ की
तुम को बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
گريہ ساماں ميں کہ ميرے دل ميں ہے طوفان اشک
شبنم افشاں تو کہ بزم گل ميں ہو چرچا ترا