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नज़्म
मुंतज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कौन सी वादी में है कौन सी मंज़िल में है
इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ का क़ाफ़िला-ए-सख़्त-जाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
''बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
और यूँ कहीं भी रंज-ओ-बला से मफ़र नहीं
क्या होगा दो घड़ी में किसी को ख़बर नहीं
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
कहते हैं उन को आशिक़ यूँ प्यार से बुला ले
क्या मेंह बरस रहा है प्यारे ज़रा नहा ले