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नज़्म
साँझ समाज हेच हैं रिश्ता-ए-ख़ूँ भी कुछ नहीं
हसरत व आरज़ू की नय बंदिश व बस्तगी की लय
अख़्तर उस्मान
नज़्म
एक इक तुक-बंद उस्तादों के मुँह आने लगा
लिख के सुब्ह-ओ-शाम नज़्में बे-तुकी से बे-तुकी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
दिलों तक जो पहुँचे मैं वो साज़ हूँ
घुटन क़ैद बंदिश के एहसास से कोरे जज़्बात से दूर हूँ मुतमइन
तबस्सुम फ़तमा
नज़्म
क़ाफ़िए और वज़्न की बंदिश से हो कर तल्ख़-काम
ऐ समंद-ए-तब्अ तुझ को कर रहा हूँ बे-लगाम