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नज़्म
नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद
अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद
साहिर लुधियानवी
नज़्म
घात में तेरी रहा ये ख़ुद-ग़रज़ सरमाया-दार
खेलता है जो बराबर नौ-ए-इंसाँ का शिकार
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
हवस ने कर दिया है टुकड़े टुकड़े नौ-ए-इंसाँ को
उख़ुव्वत का बयाँ हो जा मोहब्बत की ज़बाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नौ-ए-इंसाँ की फ़ज़ाओं पे है ज़ुल्मत का जमाव
शम-ए-महताब का क्या ज़िक्र कोई लौ भी नहीं
दर्शन सिंह
नज़्म
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम हर सम्त से इक चीख़ आती है
नौ-ए-इंसाँ काँधों पे लिए गाँधी की अर्थी जाती है