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नज़्म
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये हवस ये चोर बाज़ारी ये महँगाई ये भाव
राई की क़ीमत हो जब पर्बत तो क्यूँ न आए ताव
जोश मलीहाबादी
नज़्म
पाप के इस मंदिर में क्या क्या भाव बताए राम-जनी
शाम ढले जब आन बिराजें सोने के भगवान यहाँ
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
नागिन सी बल खाती उठ और मेरी गोद में आन मचल
भेद-भाव की बस्ती में कोई भेद-भाव का नाम न ले
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हर एक बच्चा है एक बच्चा न है किसी का कभी अदू वो
ये भेद भाव ये फ़ासला सब ख़ुद अपना पैदा किया हुआ है
शौकत परदेसी
नज़्म
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब हैं भाई भाई
भा नहीं सकती कभी किसी को इक-दूजे की जुदाई