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नज़्म
हम ने बकरी के बच्चों को कमरों में नचाना छोड़ दिया
नाराज़ न हो अम्मी हम ने हर शौक़ पुराना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
कमाल-ए-हुस्न और ये इंकिसार-ए-इश्क़ अरे तौबा
वो नाज़ुक हाथ मेरा गोशा-ए-दामन मआज़-अल्लाह