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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ज़द में कोई चीज़ आ जाए तो उस को पीस कर
इर्तिक़ा-ए-ज़िंदगी के राज़ बतलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हुकूमत के मज़ाहिर जंग के पुर-हौल नक़्शे हैं
कुदालों के मुक़ाबिल तोप बंदूक़ें हैं नेज़े हैं