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नज़्म
है तवाफ़-ओ-हज का हंगामा अगर बाक़ी तो क्या
कुंद हो कर रह गई मोमिन की तेग़-ए-बे-नियाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
''ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ''
सोचता हूँ फिर कि हज कर आऊँ स्मगलर बनूँ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
अल्लाह-जी की गाए पड़ोसन के घर खाने फली गई
पूरे नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली गई
जमील उस्मान
नज़्म
फाइलें घर में पड़ी हैं और दफ़्तर में है घर
शग़्ल-ए-बेकारी बहुत है वक़्त बेहद मुख़्तसर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सदा अम्बालवी
नज़्म
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब