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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
सुनता हूँ कि बादल उठे हैं और ओले पड़ने वाले हैं
अब जल्द बुला हज्जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
चश्म-ए-दिल वा हो तो है तक़्दीर-ए-आलम बे-हिजाब
दिल में ये सुन कर बपा हंगामा-ए-मशहर हुआ