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नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आए
इठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़ाम है जब तक तू है मिट्टी का इक अम्बार तू
पुख़्ता हो जाए तू है शमशेर-ए-बे-ज़िन्हार तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इश्क़ की मस्ती से है पैकर-ए-गिल ताबनाक
इश्क़ है सहबा-ए-ख़ाम इश्क़ है कास-उल-किराम