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नज़्म
कि तिरे तुझ से ख़ाके बनाने की मैं
अब तलक ये इक्कावनवीं कोशिश भी पूरी नहीं कर सका हूँ
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
जाने क्यों इन दिनों उम्मीद भी है ख़ाक-बसर
जाने क्यों इन दिनों मायूस तमन्ना की नज़र