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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बाद-ए-सबा की मौज से नश-नुमा-ए-ख़ार-अो-ख़स!
मेरे नफ़स की मौज से नश-ओ-नुमा-ए-आरज़ू!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अभी कुछ दिन लगेंगे
जहान-ए-रंग के सारे ख़स-ओ-ख़ाशाक सब सर्व-ओ-सनोबर भूलने में अभी कुछ दिन लगेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
ख़ार-ओ-ख़स पर एक दर्द-अंगेज़ अफ़्साने की शान
बाम-ए-गर्दूं पर किसी के रूठ कर जाने की शान
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रेज़े अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक में हैं
हड्डियाँ अपने बुज़ुर्गों की तिरी ख़ाक में हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नस्तरन में नाज़ बाक़ी है न गुल में रंग-ओ-बू
अब तो है सेहन-ए-चमन में ख़ार-ओ-ख़स की आबरू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
और तन में नीमा शबनम का हो जिस में ख़स का इत्र लगा
छिड़काव हुआ हो पानी का और ख़ूब पलंग भी हो भीगा