aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "خوف"
सो ये जवाब है मेरा मिरे अदू के लिएकि मुझ को हिर्स-ए-करम है न ख़ौफ़-ए-ख़म्याज़ा
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुएजिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
नज़र झुकाए हुए और बदन चुराए हुएख़ुद अपने क़दमों की आहट से झेंपती डरती
कुछ लोग तुम्हें समझाएँगेवो तुम को ख़ौफ़ दिलाएँगे
छुपा छुपा के ख़मोशी में अपनी बेचैनीख़ुद अपने राज़ की तशहीर बन गई हो तुम
फिर वही ख़ौफ़ की दीवार तज़ब्ज़ुब की फ़ज़ाफिर वही आम हुईं अहल-ए-रिया की बातें
और सारे ग़म मिट जाएँगेतुम ख़ौफ़-ओ-ख़तर से दर-गुज़रो
मुझे क़ैद-ख़ौफ़ से रिहा करोमैं अपने दर्द की नंगी धूप से
इल्म की झील का तैराक बनाया है मुझेख़ौफ़ को छीन के बेबाक बनाया है मुझे
ساکنان عرش اعظم کي تمناؤں کا خوں! اس کي بربادي پہ آج آمادہ ہے وہ کارساز
तैरते रहे थे एक शाद-काम ख़ौफ़ सेकि जैसे पानी आँसुओं में तैरता रहे
इंसाँ की क़बा में ये शैतान न बस्ते होंतो ख़ौफ़ नहीं ले चल!
خود تجلي کو تمنا جن کے نظاروں کي تھي وہ نگاہيں نا اميد نور ايمن ہوگئيں
दोपहर आई तो हर रग ने लहू बरसायादिन ढला ख़ौफ़ का इफ़रीत मुक़ाबिल आया
जो ज़ीस्त की बे-हूदा कशाकश से भी होते नहीं मादूमख़ुद ज़ीस्त का मफ़्हूम!
ख़ौफ़-ए-आफ़त से कहाँ दिल में रिया आएगीबात सच्ची है जो वो लब पे सदा आएगी
मैं ख़ुद को माइल ही कर न पायाये मेरी हालत मेरी तबीअ'त
मरने चले तो सतवत-ए-क़ातिल का ख़ौफ़ क्याइतना तो हो कि बाँधने पाए न दस्त ओ पा
और आरी की हँसी से कभी ख़ौफ़ नहीं खायामगर तुम रोक नहीं सकते इन्हें
जो हर इक किताब की रूह हैमुझे ख़ौफ़ है कि किताब में
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