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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब तलक रिश्वत न लें हम दाल गल सकती नहीं
नाव तनख़्वाहों के पानी में तो चल सकती नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो हवा में सैकड़ों जंगी दुहल बजते हुए
वो बिगुल की जाँ-फ़ज़ाँ आवाज़ लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दुहल करने लगे तशहीर-ए-इख़लास-ओ-वफ़ा
कुश्ता-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का दिल जलाने के लिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दाद देने के लिए रखता हूँ कुछ अहबाब साथ
शे'र उन के वास्ते भी माँग कर लाता हूँ मैं