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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दश्त के काम-ओ-दहन को दिन की तल्ख़ी से फ़राग़
दूर दरिया के किनारे धुँदले धुँदले से चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मंज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतिज़ाम
दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
एक गूँजता हुआ आसमान नज़्म के लिए काफ़ी होता है
लेकिन ये एक नाश्ता-दान में बा-आसानी समा सकती है
सरवत हुसैन
नज़्म
ख़्वाब ज़ख़्मी हैं उमंगों के कलेजे छलनी
मेरे दामन में हैं ज़ख़्मों के दहकते हुए फूल
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
वही है शौक़-ए-नौ-ब-नौ, वही जमाल-ए-रंग-रंग
मगर वो इस्मत-ए-नज़र, तहारत-ए-लब-ओ-दहन