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नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नज़्म
जहाँ जज़्बात अहल-ए-दिल के ठुकराए न जाते हों
जहाँ बाग़ी न कहता हो कोई ख़ुद्दार इंसाँ को
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
गुल-ओ-गुलज़ार के मंज़र वो शे'रों में दिखाता है
वो अपने ही ख़यालों की नई दुनिया बसाता है
नारायण दास पूरी
नज़्म
आह में ऐ दिल-ए-मज़लूम असर पैदा कर
जिस में सौदा-ए-मोहब्बत हो वो सर पैदा कर