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नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न हो नौमीद नौमीदी ज़वाल-ए-इल्म-ओ-इरफ़ाँ है
उमीद-ए-मर्द-ए-मोमिन है ख़ुदा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझे राज़-ए-दो-आलम दिल का आईना दिखाता है
वही कहता हूँ जो कुछ सामने आँखों के आता है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इल्म ओ हिकमत रहज़न-ए-सामान-ए-अश्क-ओ-आह है
या'नी इक अल्मास का टुकड़ा दिल-ए-आगाह है