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नज़्म
कटी हुई हैं उँगलियाँ रुबाब ढूँढता हूँ मैं
जिन्हें सहर निगल गई वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
इसी से अंग्रेज़ हुक्मरानों ने ख़ुद-सरी का जवाब पाया
इसी से मेरी जवाँ तमन्ना ने शायरी का रबाब पाया
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
कितने सीनों में शिकस्ता हैं अभी दिल के रबाब
लब-ए-ख़ामोश पे हैं नग़्मा-ए-मातम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अब्र के पर्दों में साज़-ए-जंग की आवाज़ है
फेंक दे ऐ दोस्त अब भी फेंक दे अपना रुबाब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रबाब छेड़ ग़ज़ल-ख़्वाँ हो रक़्स-फ़रमा हो
कि जश्न-ए-नुसरत-ए-मेहनत है जश्न-ए-नुसरत-ए-फ़न
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तू और शुग़्ल-ए-रामिश-ओ-रक़्स-ओ-रबाब-ओ-रंग
क्या तेरे साज़ में भी दहकती है कोई आग
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
वो क्या आता कि गोया दौर में जाम-ए-शराब आता
वो क्या आता रंगीली रागनी रंगीं रुबाब आता