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नज़्म
महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न दोस्तो बे-फ़ैज़ हुई
गुल करो शम'एँ चराग़ों की लवें ज़ख़्मी करो
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
दिल मसर्रत की फ़रावानी से दीवाना है आज
देखना ये कौन आख़िर ज़ेब-ए-काशाना है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़ुंचा-ए-दिल मर्द का रोज़-ए-अज़ल जब खुल चुका
जिस क़दर तक़दीर में लिक्खा हुआ था मिल चुका
जोश मलीहाबादी
नज़्म
धीमी धीमी बहने वाली एक नहर-ए-दिल-नशीं
आब-ए-जू छोटी सी इक नाज़ुक ख़िराम-ओ-नाज़नीं