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नज़्म
कि जिन के सर पर फिरा जो हज़रत का दस्त-ए-शफ़क़त
तो कम-सिनी के लहू से रीश-ए-सपेद रंगीन हो गई है
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
हाँ किस लिए ख़ामोश है ओ तख़्त-ए-जिगर-रेश
किस ग़म में सियह-पोश है क्या सोग है दर-पेश