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नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दैर-ओ-हरम के आस्तानों से
वो जिन के दर पे की है मुद्दतों मैं ने जबीं-साई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक न इक दर की जबीं-साई पे क़िस्मत ज़ीस्त की
कर दे सब से बे-नियाज़ इक ऐसा सज्दा क्यों न हो
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब