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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सख़ी आँखों के अश्कों ने तुम्हें कंगाल कर डाला
तुम्हारी बे-दिली का कर्ब अब देखा नहीं जाता
शहरयार
नज़्म
सख़ी आँखों के अश्कों ने तुम्हें कंगाल कर डाला
तुम्हारी बे-दिली का कर्ब अब देखा नहीं जाता
शहरयार
नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
झिलमिलाते क़ुमक़ुमों की राह में ज़ंजीर सी
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी