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नज़्म
जी के मैं क्या करूँ दुनिया में मिरा काम है क्या
ख़ून उम्मीद का होता है सर-ए-बज़्म-ए-तरब
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
शाना-ए-गीती पे लहराने को हैं गेसु-ए-शब
आसमाँ में मुनअक़िद होने को है बज़्म-ए-तरब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
शा'इरी हो 'इल्म-ओ-हिकमत हो कि हो बज़्म-ए-तरब
सिलसिला दर सिलसिला दर सिलसिला भोपाल है
ज़िया फ़ारूक़ी
नज़्म
ठीक कर देगा फ़लक इन की भी अक़्लों का फ़ुतूर
रविश-ए-बज़्म-ए-तरब इन की भी बदलेगी ज़रूर
हिलाल रिज़वी
नज़्म
शोरिश-ए-बज़्म-ए-तरब क्या ऊद की तक़रीर क्या
दर्दमंदान-ए-जहाँ का नाला-ए-शब-गीर क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस ने आग़ाज़ किया ज़मज़मा-ए-बज़्म-ए-तरब
लब-ए-जाँ-बख़्श की थोड़ी सी भी जुम्बिश है ग़ज़ब
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
इक तमाशे की तरह वक़्त पे उर्यां होते
अपनी ख़्वाहिश को सर-ए-बज़्म न रुस्वा करते