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नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ऐ शुआ-ए-अर्ज़-ए-मशरिक़ तेरी इफ़्फ़त का शिआर
कज करेगा मुल्क ओ मिल्लत की कुलाह-ए-इफ़्तिख़ार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क्या जाँ-फ़ज़ा है जल्वा ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी का
हर इक शुआ-ए-रक़्साँ मिस्रा है अनवरी का
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
जैसे पेशानी-ए-मशरिक़ पे हो सुब्ह-ए-काज़िब
जैसे तारीक ख़लाओं में शहाब-ए-साक़िब