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नज़्म
तब-ए-मशरिक़ के लिए मौज़ूँ यही अफ़यून थी
वर्ना क़व्वाली से कुछ कम-तर नहीं इल्म-ए-कलाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वारिस-ए-असरार-ए-फ़ितरत फ़ातेह-ए-उम्मीद-ओ-बीम
महरम-ए-आसार-ए-बाराँ वाक़िफ़-ए-तब्अ-ए-नसीम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
घर से लाया था जो कुछ तब्-ए-रवाँ ज़ेहन-ए-रसा
साथ उस के रहे असबाब-ए-तबाही बन कर
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मज़मूँ फ़िराक़ का हूँ सुरय्या निशाँ हूँ मैं
आहंग-ए-तबा नाज़िम-ए-कौन-ओ-मकां हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मंतक़ी काँटे पे रखता है कलाम-ए-दिल-पज़ीर
काश इस नुक्ते को समझे तेरी तब-ए-हर्फ़-गीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
विदा-ए-रोज़-ए-रौशन है गजर शाम-ए-ग़रीबाँ का
चरा-गाहों से पलटे क़ाफ़िले वो बे-ज़बानों के
नज़्म तबातबाई
नज़्म
था दिमाग़-ओ-दिल में सहबा-ए-क़नाअत का सुरूर
थी जवाब-ए-सतवत-ए-शाही तिरी तब-ए-ग़यूर