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नज़्म
जैसे ज़मीं पाँव के नीचे से सरकती जा रही है
तबक़ सातों के सातों आसमाँ के इस के सर पर आ गिरे हैं
तहसीन फ़िराक़ी
नज़्म
मैं ने सातों ज़मीनों के सातों तबक़ आज रौशन किए हैं
देखना आसमाँ रक़्स करने लगा है
तबस्सुम काश्मीरी
नज़्म
फिर तौक़ नज़र आया ज़ंजीर नज़र आई
फिर जोशिश-ए-वहशत ने की सिलसिला-जुम्बानी
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तब-ए-मशरिक़ के लिए मौज़ूँ यही अफ़यून थी
वर्ना क़व्वाली से कुछ कम-तर नहीं इल्म-ए-कलाम