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नज़्म
अंजुम-ए-कम-ज़ौ गिरफ़्तार-ए-तिलिस्म-ए-माहताब
देखता क्या हूँ कि वो पैक-ए-जहाँ-पैमा ख़िज़्र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह ये दुनिया ये मातम-ख़ाना-ए-बरना-ओ-पीर
आदमी है किस तिलिस्म-ए-दोश-ओ-फ़र्दा में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तोड़ देते हैं जहालत के अँधेरों का तिलिस्म
इल्म की शम्अ' जलाते हैं हमारे उस्ताद
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
ज़रा जो दम भर को आँख झपकी, ये देखता हूँ नई तजल्ली
तिलिस्म सूरत मिटा रहे हैं, जमाल मअनी बना रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
وجود افراد کا مجازي ہے ، ہستي قوم ہے حقيقي
فدا ہو ملت پہ يعني آتش زن طلسم مجاز ہو جا