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नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्यूँ डराते हैं अबस गबरू मुसलमाँ मुझ को
क्या मिटाएगी भला गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मुझे मुस्कान का पहला सहीफ़ा याद है अब तक
कि दिल जिस की तिलावत से सकूँ के घूँट भरता था
बिलाल अहमद
नज़्म
शब के ख़ामोश मनाज़िर हैं अजब ख़ौफ़-ज़दा
बे-अमाँ जाने किसे ढूँढने की ज़िद में अबस
मोनी गोपाल तपिश
नज़्म
नहीं तो मेरी साँसों में सावन का अबस और अमलतास की गर्मी है
और साँसो और आँखों के दरमियान