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नज़्म
रियाज़-ए-दहर में मानिंद-ए-गुल रहे ख़ंदाँ
कि है अज़ीज़-तर अज़-जाँ वो जान-ए-जाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुज़ूर क्या कहा मैं आप को बहुत अज़ीज़ हूँ
हुज़ूर का करम है वर्ना मैं भी कोई चीज़ हूँ
अहमद फ़राज़
नज़्म
रखते हैं जो अज़ीज़ उन्हें अपनी जाँ की तरह
मिलते हैं दस्त-ए-यास वो बर्ग-ए-ख़िज़ाँ की तरह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मुझ को भी प्यार से ख़्वाबों से तुम्हारी ही तरह
मुझ को भी अपनी जवाँ-साल उमंगें हैं अज़ीज़