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नज़्म
हम से ग़रीब ग़ुरबा कीचड़ में गिर पड़े हैं
हाथों में जूतियाँ हैं और पाएँचे चढ़े हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आज ग़ुरबा भी अमीरों के गले मिल जाएँगे
कुछ नहीं तफ़रीक़ होगी ये विसाल-ए-ईद है