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नज़्म
वो यहूदी फ़ित्ना-गर वो रूह-ए-मज़दक का बुरूज़
हर क़बा होने को है इस के जुनूँ से तार तार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आने वाले दौर की धुँदली सी इक तस्वीर देख
आज़मूदा फ़ित्ना है इक और भी गर्दूं के पास
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़म ओ हिरमाँ की यूरिश है मसाइब की घटाएँ हैं
जुनूँ की फ़ित्ना-ख़ेज़ी हुस्न की ख़ूनीं अदाएँ हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये इंसानों से इंसानों की फ़ितरत छीन लेती है
ये आशोब-ए-हलाकत फ़ित्ना-ए-इस्कंदर-ओ-दारा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
इस के दामन में है आसूदा वो फ़ित्ना जिस से
जिस्म तो जिस्म मयस्सर नहीं रूहों को अमाँ
आमिर उस्मानी
नज़्म
वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को
कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये तो हैं फ़ित्ना-ए-बेदार दबा दो इन को
ये मिटा देंगे तमद्दुन को मिटा दो इन को
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सियाही बन के छाया शहर पर शैतान का फ़ित्ना
गुनाहों से लिपट कर सो गया इंसान का फ़ित्ना