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नज़्म
लालची कितने ख़ुशामद-ख़ोर दौलत के ग़ुलाम
ख़ुद-ग़रज़ मक्कार इब्न-उल-वक़्त झूटों के इमाम
शातिर हकीमी
नज़्म
अब तक मेरे गीतों में उम्मीद भी थी पसपाई भी
मौत के क़दमों की आहट भी जीवन की अंगड़ाई भी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं
जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
कहाँ तक ऐ सितमगर चर्ख़ तदबीरें ग़ुलामी की
कि अब बार-ए-गराँ है दिल को ज़ंजीरें ग़ुलामी की
ज़ाहिदा खातून ज़ाहिदा
नज़्म
कुछ ऐसे रूप में आया है फ़ित्ना-ए-हाज़िर
तमीज़-ए-दोस्ताँ ओ दुश्मनाँ भी मुश्किल है
मौलवी सय्यद मुमताज़ अली
नज़्म
झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया
एक बुढ़िया ने सर-ए-रह ला के रौशन कर दिया