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ग़ुन्चग़ी का सफ़र

तालिब जोहरी

ग़ुन्चग़ी का सफ़र

तालिब जोहरी

MORE BYतालिब जोहरी

    वो नौजवान उमंगों की गर्म-बाज़ारी

    मुहीत-ए-ज़ात वो इक बे-कराँ ख़ुद-आज़ादी

    वो तमतमाते हुए दिन वो साँवली रातें

    वो कम-सिनी का तमव्वुज वो दिल की सरशारी

    वो सिन कि जिस ने बस इक लज़्ज़त-ए-नज़र के लिए

    जाने कितने दरीचों से की वफ़ादारी

    वो सिन कि तुंद हो इस दर्जा क़ुव्वत-ए-एहसास

    कि हर ख़ुशी पे हो अंदोह मुस्तक़िल तारी

    कभी बदून-ए-सबब सरख़ुशी की कैफ़िय्यत

    कभी ये हाल कि बे-वज्ह गिर्या-ओ-ज़ारी

    कभी 'इताब-ए-बुज़ुर्गां के ख़ौफ़ से पैदा

    गली के मोड़ पे बे-वज्ह तेज़-रफ़्तारी

    किसी का 'अक्स-बुज़ुर्गांतिलाई गले लगाए हुए

    उदास रात की तन्हाइयों में बेदारी

    कभी किसी से अचानक जो सामना हो जाए

    तो सनसनाए रग-ओ-पय में कैफ़-ए-सरशारी

    अगर लबों से तबस्सुम की इक किरन फूटे

    तो चाँदनी में नहा जाए रात अँधियारी

    वफ़ूर-ए-शर्म से पलकें अगर झपक जाएँ

    दिल-ओ-जिगर में तराज़ू हों बर्छियाँ सारी

    कभी गर उस रुख़-ए-ताबिंदा पर हो गर्द-ए-मलाल

    तो अपनी जाँ से नहीं दो जहाँ से बेज़ारी

    क़दम क़दम पे शिकस्त-ए-ख़याल का मातम

    गली गली में तमन्नाओं की 'अज़ा-दारी

    कभी हुजूम-ए-तमन्ना में 'अर्ज़-ए-हाल के वक़्त

    किसी ग़ज़ाल-ए-हिरासाँ की तेज़ रफ़्तारी

    किसी सितारा-ए-तन्हा का इर्ति'आश-ए-ख़फ़ी

    किसी अलाव में सहमी हुई सी चिंगारी

    हवा के रुख़ पे किसी बादबान की लर्ज़िश

    किसी चकोर की रातों में गिर्या-ओ-ज़ारी

    लब-ए-सवाल पे ठिटका हुआ कोई मक़्सद

    दयार-ए-ग़ैर में इक अजनबी की दुश्वारी

    ये ग़ुन्चग़ी का सफ़र था शगुफ़्तगी की तरफ़

    कि जैसे ख़्वाब की करवट में 'अज़्म-ए-बेदारी

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