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नज़्म
है हक़ीक़त तो यही कहते हो तुम हाल जिसे
किया था कल तक नहीं आइंदा वक़्त का ही क़यास
आदित्य पंत नाक़िद
नज़्म
जुदा मेरी क़यास-आराई से हर अहल-ए-फ़न निकला
मैं जिस को रेश्माँ समझता था वो मेहदी-हसन निकला
असद जाफ़री
नज़्म
क़यास अपना किया उन पर जो मैं ने ऐ शरीफ़ इंसाँ
नज़र आया मुझे उन में कोई ख़ंदाँ कोई गिर्यां
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
ज़ाहिरी हालत पे हरगिज़ कर न बातिन का क़यास
ख़ूबी-ए-तन पर दलालत कर नहीं सकता लिबास