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नज़्म
तेरी निगाह-ए-नाज़ से दोनों मुराद पा गए
अक़्ल, ग़याब ओ जुस्तुजू! इश्क़, हुज़ूर ओ इज़्तिराब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं भी नाकाम-ए-वफ़ा था तो भी महरूम-ए-मुराद
हम ये समझे थे कि दर्द-ए-मुश्तरक रास आ गया
अहमद फ़राज़
नज़्म
बाद-ए-मुराद ओ चश्मक-ए-तूफ़ाँ लिए हुए
हूँ बू-ए-ज़ुल्फ़-ओ-जुंबिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मिल नहीं सकती निकम्मों को ज़माने में मुराद
कामयाबी की जो ख़्वाहिश हो तो मेहनत चाहिए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर