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नज़्म
हर इक ज़ी-रूह की नज़रों का मरकज़, मौजिब-ए-हैरत
चमकते नूरियों की शौकत-ए-बेताब का शाहिद
मोहम्मद शहबाज़ अकमल
नज़्म
तू ने ऐ ग़ाफ़िल समझ रखा है जिस को बाम-ए-औज
है ये तूफ़ान-ए-हलाकत-आफ़रीं की एक मौज
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
इक़तिदार जावेद
नज़्म
कोई मौज-ए-... कोई मौज-ए-शुमाल-ए-जावेदाँ जाने
शुमाल-ए-जावेदाँ के अपने ही क़िस्से थे जो गुज़रे