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नज़्म
सईद अहमद
नज़्म
कारवान-ए-रफ़्ता को था तेरी यकताई पे नाज़
अस्र-ए-मौजूदा ने भी माना है तेरा इम्तियाज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मीराजी
नज़्म
अब मुझे तेरी मौजूदगी चाहिए
अपने साटन में सहमे हुए सुर्ख़ पैरों को अब मेरे हाथों पे रख