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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात