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नज़्म
ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हसन जिस का तसव्वुर बशर का काम नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शायर है तो अदना है, आशिक़ है तो रुस्वा है
किस बात में अच्छा है किस वस्फ़ में आली है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दुर-फ़िशाँ है हर ज़बाँ हुब्ब-ए-वतन के वस्फ़ में
जोश-ज़न हर सम्त बहर-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
यहीं से मेरे होंटों को मिला है वस्फ़-ए-गोयाई
यहीं से मेरे होंटों को मिला है वस्फ़-ए-गोयाई
नोशी गिलानी
नज़्म
मुग़ल गाड़ी के हर इक वस्फ़ का इदराक रखते हैं
जभी तो कार में ईंटों का वो स्टॉक रखते हैं
असद जाफ़री
नज़्म
उस के बा-वस्फ़
कभी मुसाफ़िर को बाज़याबी नसीब होती थी और कभी रास्ते में दम उस का टूट जाता था
अदीब सुहैल
नज़्म
सुख़न-वरी ही तो 'बासित' है मेरा वस्फ़-ए-दिगर
सो मैं ने शे'र कहा मैं ने शा'इरी लिक्खी