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नज़्म
इक सूरज है जो शाम-ढले मुझे पुरसा देने आता है
उन फूलों का जो मेरे लहू में खिलने थे और खिले नहीं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दल के दल बादल जब तेरा पुर्सा दे के चले जाते
दूर कहीं इक अब्र का टुकड़ा जैसे मुझ को रोता था
शहाब जाफ़री
नज़्म
आज मिल जाएगा शायद यहाँ अश्कों का सिला
हदिया-ए-अश्क मैं लाया हूँ ब-नाम-ए-पुर्सा
सलाहुद्दीन नय्यर
नज़्म
हर बात की खोज तो ठीक नहीं तुम हम को कहानी कहने दो
उस नार का नाम मक़ाम है क्या इस बात पे पर्दा रहने दो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गूँजती है जब फ़ज़ा-ए-दश्त में बाँग-ए-रहील
रेत के टीले पे वो आहू का बे-परवा ख़िराम