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नज़्म
दिल ऐश-ओ-तरब में पलता हो तब देख बहारें जाड़े की
हो फ़र्श बिछा ग़ालीचों का और पर्दे छोटे हों आ कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इस पे सिगरेट ने कहा पान से ये क्या है सितम
छाँव में पलता है और तू है बड़ा सब्ज़ क़दम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
दाग़ जिन के साज़-ओ-सामाँ दर्द जिन का पासबाँ
क्या इसी दुनिया में तू पलता है ऐ हिन्दोस्ताँ
मयकश अकबराबादी
नज़्म
चुनाँचे उन के घर में मुस्तक़िल दुलदुल भी पलता था
हमेशा नौ मुहर्रम को अलम घर से निकलता था
हारिस ख़लीक़
नज़्म
मोहब्बत में कोई भी डर ज़माने का नहीं होता
मोहब्बत ऐसा पौदा है कि जो ख़ारों में पलता है