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नज़्म
चुनाँचे उन के घर में मुस्तक़िल दुलदुल भी पलता था
हमेशा नौ मुहर्रम को अलम घर से निकलता था
हारिस ख़लीक़
नज़्म
चुनाँचे मैं ने अपनी बीनाई उल्लू को तोहफ़ा की
अपनी लाचार मोहब्बत को वेंटीलेटर पर छोड़ा
मंज़र लतीफ़
नज़्म
चुनाँचे मुझे जिस क़दर अपने पापा पे पक्का यक़ीं है
उन की सब लोक-घाथाओं पर भी है उतना यक़ीं
अंजुम शकील
नज़्म
परतव रोहिला
नज़्म
चुनाँचे मैं ने अपनी बीनाई उल्लू को तोहफ़ा की
अपनी लाचार मोहब्बत को वेंटीलेटर पर छोड़ा
मंज़र लतीफ़
नज़्म
छाना दश्त-ए-मोहब्बत कितना आबला-पा मजनूँ की मिसाल
कभी सिकंदर कभी क़लंदर कभी बगूला कभी ख़याल
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अब हम ने कभी खाना खा कर कपड़ों से हाथ नहीं पोंछे
देखो कई दिन से धोबी ने रोना चिल्लाना छोड़ दिया