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नज़्म
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
''हर एक करवट मैं याद करता हूँ तुम को लेकिन
ये करवटें लेते रात दिन यूँ मसल रहे हैं मिरे बदन को
गुलज़ार
नज़्म
मुमकिन है ज़माना रुख़ बदले ये दौर-ए-हलाकत मिट जाए
ये ज़ुल्म की दुनिया करवट ले ये अहद-ए-ज़लालत मिट जाए
आमिर उस्मानी
नज़्म
सीने के वीराँ गोशों में इक टीस सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस तेज़ हवा में ख़ैर नहीं है ऊँची पगड़ी वालों की
एहसास-ए-ख़ुदी मज़लूमों का अब चौंक के करवट लेता है
जमील मज़हरी
नज़्म
सियाह कमरा तुम्हारे बालों की तीरगी से चमक रहा है
सियाह कमरा लिबास की हर अछूती करवट से कह रहा है