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नज़्म
अहल-ए-ईमाँ जस तरह जन्नत में गिर्द-ए-सलसबील
ताज़ा वीराने की सौदा-ए-मोहब्बत को तलाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्द से पाक है हवा बर्ग-ए-नख़ील धुल गए
रेग-ए-नवाह-ए-काज़िमा नर्म है मिस्ल-ए-पर्नियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रुकी रुकी दिल-ए-फ़ितरत की धड़कनें यक-लख़्त
ये रंग-ए-शाम कि गर्दिश ही आसमाँ में नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
क़मर अपने लिबास-ए-नौ में बेगाना सा लगता था
न था वाक़िफ़ अभी गर्दिश के आईन-ए-मुसल्लम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुझ में कुछ पैदा नहीं देरीना रोज़ी के निशाँ
तू जवाँ है गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर के दरमियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाँ कज करो कुलाह कि सब कुछ लुटा के हम
अब बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रगों में मेरी जैसे ख़ूँ की गर्दिश तेज़ हो जाती
लहू का एक इक क़तरा ये कहता मैं तो ज़िंदा हूँ